नए साल में जयशंकर का रहा जलवा, कनाडा-पाकिस्तान को सुनाई खरी-खरी

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नए साल में जयशंकर का रहा जलवा, कनाडा-पाकिस्तान को सुनाई खरी-खरी

हम आत्मविश्वस्त हैं कि अगले साल हमें कुछ विशिष्ट फैसले लेने होंगे- पूरे विश्वास से भरी यह वाणी भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की है, जो उन्होंने मॉस्को में कही थी. उनसे मिलने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने सारे प्रोटोकॉल तोड़ दिए थे और वह जयशंकर से मिले. वह पिछले साल 2023 की बात थी. इस साल के भी तीन दिने बीतने को हैं और भारत लौटते ही विदेशमंत्री ने फिर से धमाका किया है. एक न्यूज एजेंसी से साक्षात्कार में उन्होंने पाकिस्तान और कनाडा को खरी-खरी भी सुनाई. बिल्कुल अपने खांटी अंदाज में. इसके पहले भी यह देखा गया है कि जयशंकर ने कई मौकों और मंचों पर बेबाकी से बयान दिया है. उन्होंने यूरोप को आईना भी दिखाया है और ग्लोबल साउथ के देशों को साथ लेकर चलने की बात भी कही है. इस नए साल में भारतीय विदेश नीति का नया आयाम देखने को मिल सकता है, ऐसी आशा की जाय तो बेजां नहीं होगी.

खरी-खरी के माहिर जयशंकर 

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बिल्कुल जमीनी स्तर से अपना करियर शुरू किया है और यहां तक पहुंचे हैं. भारतीय विदेश सेवा से बिल्कुल पहले पायदान के पद से शुरू कर आज वह विदेश नीति के नियंता बने हैं और इसीलिए उनको डिप्लोमैसी के सारे हर्बे-हथियार बखूबी पता हैं. उनको पता है कि कब, कहां और किससे, कैसे बात करनी है. यही वजह रही कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने उनके लिए अपना प्रोटोकॉल तोड़ दिया. वह अपने समकक्षों से ही वन टू वन करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन भारत-रूस शिखर वार्ता के लिए मॉस्को पहुंचे जयशंकर से पुतिन न केवल मिले, बल्कि उनको पूरी अहमियत, तवज्जो और सम्मान भी दिया. वहां उनके कहे एक वाक्य को अब ‘कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनय’ के विशेषज्ञ डी-कोड करने में लगे हैं, जब उन्होंने कहा कि अगले साल भारत को कुछ ‘विशिष्ट’ और ‘बड़े’ फैसले लेने पड़ सकते हैं.

यह तो खैर बीते साल यानी 2023 की बात थी, लेकिन नए साल की शुरुआत भी उन्होंने धमाकेदार और अपने अंदाज में ही की. उन्होंने एक साक्षात्कार में पाकिस्तान, कनाडा और कई अंतरराष्ट्रीय मसलों पर अपनी राय रखी. हालांकि, कनाडा और पाक पर उनका बयान अधिक सुर्खियां बटोर रहा है. उन्होने खुलकर कहा कि कनाडा की राजनीति ने उनके घरेलू कारणों की वजह से खालिस्तानी ताकतों को पनाह दी है और वे अब सीधे तौर पर कनाडा की राजनीति में मुब्तिला हैं. इस हालात को उन्होंने भारत और कनाडा दोनों के लिए खतरा बताया. विदेश मंंत्री ने कनाडा सरकार को संदेश देते हुए कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में इस मुद्दे पर दोनों देशों के संबंध प्रभावित हुए हैं. खालिस्तान मुद्दे से कनाडा किस प्रकार निपटता है, यह हमारे लिए दीर्घकालिक चिंता का विषय रहा है, क्योंकि यह वोट बैंक की मजबूरियों और उनकी घरेलू राजनीति से प्रेरित है. हमने कनाडा को यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंडता और सुरक्षा को प्रभावित करने वाली गतिविधियों की अनुमति देने पर उसका जवाब दिया जाएगा.’’

बेबाक और स्वहित की प्राथमिकता वाली नीति

कुछ वर्षों पहले तक भारतीय विदेश मंत्री या डिप्लोमैट से इस तरह की साफ और बेलाग-लपेट की बात कल्पना के परे थी. डिप्लोमैसी का अर्थ ही समझा जाता था कि आप कड़ी से कड़ी बात को ‘शुगरकोट’ करके कहेंगे, लेकिन यह जयशंकर का अपना स्टाइल और ट्रेडमार्क है. हमें याद करना चाहिए कि उन्होंने कुछ महीने पहले यूरोप को भी यह सलाह दी थी कि वैश्विक आपदा तभी नहीं आती है, जब यूरोप को कुछ होता है. आज का दौर बदल चुका है और वैश्विक नीति और रीति यूरोसेंट्रिक नहीं हो सकती है. इसी तरह रूस से तेल खरीदने के मसले पर भी उन्होंने यूरोपीय यूनियन के देशों को आईना दिखाया था और आंकड़ों के साथ बता दिया था कि भारत से अधिक तेल तो यूरोप के देश खरीद रहे हैं, लेकिन ऊंगली उठाने में वो सबसे आगे हैं.

पड़ोसियों के मसले पर भी भारत की स्थिति को जयशंकर ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है. पाकिस्तान के साथ भारत की स्पष्ट नीति है कि ‘टेरर एंड टॉक’ साथ-साथ नहीं चल सकते. इसी का खास जयशंकरीय लहजा देखने लायक है, जब उन्होंने कहा, ‘‘भारत सार्क की बैठक तब तक नहीं कर सकता, जब तक इसका एक सदस्य आतंकवाद जैसे कृत्यों में शामिल हो. भारत ऐसी स्थिति को बर्दाश्त नहीं करेगा जहां रात में आतंकवाद होता है व दिन में व्यापार.’’ उन्होंने पिछले साल भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था जब मई में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने बेसिरपैर की बात कही थी और भारत को आतंकवाद को हथियार बनाकर राजनीति लाभ लेने से बचने की बेपर की सलाह दी थी.

जयशंकर ने तब पाकिस्तान को आतंकवादी की इंडस्ट्री करार दिया और बिलावल को इसका प्रवक्ता बताया था. यह बताता है कि भारतीय विदेश नीति पीएम मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर के दौर में एक कदम आगे बढ चुकी है. कूटनीति का सहारा लेकर गोलमोल बातें करने की बजाय जयशंकर बेबाक और स्पष्टवक्ता हैं. यह डिप्लोमैसी का नया युग है, जहां भारत अपने हित को सर्वोपरि मानता है और वैश्विक रंगमंच पर अपनी भूमिका बढ़ाना भी चाहता है. दुनिया इसे देख भी रही है और इसका स्वागत भी कर रही है.

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