जब किसी भी व्यक्ति को अपने पितरों का श्राप लगता है तो वह परेशान हो जाता है, उसके जीवन में उन्नति नहीं होती है. उसके परिवार में कलह क्लेश होता है. पितरों का श्राप दो तरह का होता है. एक पितृ श्राप और दूसरा मातृ श्राप. पितृ श्राप के समान ही मातृ श्राप व्यक्ति के लिए कष्टकारी होता है. मातृ श्राप का अर्थ है माता का श्राप. जो माताएं पितर हो गई हैं या आपके पूर्व जन्म में अपनी माता को दिए गए दुख, संताप से यह श्राप मिलता है. आइए जानते हैं कि मातृ श्राप क्या है? मातृ श्राप से क्या नुकसान होते हैं? मातृ श्राप से मुक्ति के उपाय क्या हैं?
मातृ श्राप क्या है?
जब कोई व्यक्ति अपनी मां या फिर मां के समान किसी महिला को पीड़ा पहुंचाता है, उसे अनेक प्रकार के दुख देता है, तब इसके परिणाम स्वरूप वह स्त्री श्राप या बद्दुआ देती है, जिससे उस व्यक्ति को मातृ दोष का भागी बनना पड़ता है. ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार से पितृ दोष लगता है.
मातृ श्राप से होने वाले नुकसान
1. यदि किसी व्यक्ति को मातृ श्राप या मातृ दोष है तो उस व्यक्ति को संतान सुख प्राप्त नहीं होता है.
2. मातृ श्राप के कारण व्यक्ति को पुत्र की हानि झेलनी पड़ती है.
3. मातृ श्राप की वजह से व्यक्ति को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है.
मातृ श्राप कैसे जानें?
1. ज्योतिष के अनुसार, यदि आपकी कुंडली के 5वें भाव का स्वामी 6, 8 या 12वें भाव में हो, लग्न का स्वामी ग्रह नीच राशि में हो और चंद्रमा भी नीच का हो तो मातृ श्राप की वजह से उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं होती है.
2. सुख भाव में पाप ग्रह, पंचमेश ग्रह शनि के साथ हो, 8वें और व्यय स्थान में पाप ग्रह होता है तो उस व्यक्ति को मातृ दोष लगता है. इससे उसे पुत्र की हानि होती है.
3. लाभ स्थान में शनि, 4वें भाव में पाप ग्रह, 5वें भाव में नीच का चंद्रमा होने से भी मातृ श्राप लगता है.
4. पंचमेश चंद्रमा होकर नीच राशि में हो और पाप ग्रहों के बीच हो, 4वें और 5वें भाव में पाप ग्रह रहे, तो भी मातृ श्राप लगता है.
5. लग्न में 6 और 8वें भाव का स्वामी बैठा हो, व्यय स्थान पर 4वें भाव का स्वामी हो, गुरु और चंद्रमा पाप ग्रहों के साथ हों तो मातृ श्राप लगता है.
6. अष्टमेश 9वें भाव और पंचमेश 8वें भाव में रहे, चंद्रमा और चतुर्थेश 6, 8, 12वें स्थान पर हो तो भी मातृ श्राप का भागी बनना पड़ता है.
मातृ श्राप से मुक्ति के उपाय
1. मातृ श्राप से मुक्ति के लिए आप किसी ब्राह्मण से पुरुषसूक्त और श्री सूक्त का पाठ कराएं. यह पाठ 21 बार कराना होगा. पाठ के बाद पीपल के पेड़ की कम से कम 21 बार परिक्रमा करें. उसके बाद पूजा करें. इस उपाय को करने से मातृ श्राप से मुक्ति मिलती है और पुत्र की प्राप्ति होने का योग बनता है.
2. मातृ श्राप से मुक्ति का दूसरा उपाय है कि आप 11 हजार से सवा लाख तक गायत्री मंत्र का जाप कराएं. उसके बाद किसी ब्राह्मण और उसकी पत्नी को भोजन कराएं. उनको दूध और दक्षिणा दें. इसमें आप फल, कपड़े, चांदी की कटोरी में चावल भरकर दान करें.