सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज को पद्मश्री सम्मान, कई और रिकॉर्ड हैं नाम

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सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज को पद्मश्री सम्मान, कई और रिकॉर्ड हैं नाम

पद्म पुरस्‍कारों का ऐलान कर दिया गया है. इस साल 132 लोगों को सम्‍मानित किया जाएगा. पद्म पुरस्‍कारों में तीन वर्ग पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री होते हैं. पूर्व उपराष्‍ट्रपति एम. वेंकैया नायडू को पद्म विभूषण से सम्‍मानित किया जाएगा. उनके अलावा बॉलीवुड की दिग्‍गज अभिनेत्री वैजयंतीमाला, तृत्‍यांगना पद्मा सुब्रमण्‍यम और अभिनेता चिरंजीवी को भी पद्म विभूषण पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जाएगा. वहीं, बिंदेश्‍वर पाठक को मरणोपरांत पद्म विभूषण पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जाएगा. बता दें कि पद्म पुरस्‍कार मरणोपरांत नहीं दिए जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में सरकार इन पर विचार कर सकती है. पद्म भूषण पुरस्‍कार पाने वाले 17 लोगों में सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज का नाम भी शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनने का गौरव फातिमा बीवी को हासिल है. इसके अलावा उनके नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं. वह उच्च न्यायपालिका में पहली मुस्लिम महिला भी थीं. इसके अलावा एशियाई देशों में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली भी पहली महिला थीं. उन्‍होंने 1950 में कानून की डिग्री हासिल करने के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया की परीक्षा दी. वह इस परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला भी थीं. उन्‍हें बार काउंसिल का स्वर्ण पदक भी मिला था. उनका जन्म 30 अप्रैल 1927 को केरल के पथनमथिट्टा में सरकरी कर्मचारी अन्‍नावीतिल मीरा साहिब और खडेजा बीबी के घर हुआ था.

फातिमा बीवी के पिता अन्‍ना चांडी से थे प्रभावित

फातिमा बीवी ने 1943 में पथनमथिट्टा के कैथोलिकेट हाईस्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की. इसके बाद उन्‍होंने तिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज से बी.एससी. करके गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की. उनके पिता अन्‍नावीतिल मीरा साहिब भारत की पहली महिला जज और फिर देश के किसी भी हाईकोर्ट की पहली महिला जज बनने वाली जस्ट‍िस अन्‍ना चांडी से काफी प्रभावति थे. इसलिए उन्होंने फातिमा बीवी को भी कानून की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया. फातिमा बीवी ने 1950 में कानून की डिग्री हासिल कर ली. उन्‍होंने 14 नवंबर 1950 को केरल में निचली अदालत में काम शुरू किया.

ज्‍यूडिशरी में महिलाओं की कमी पर जताई चिंता

साल 1958 में फातिमा बीवी ने केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ की नौकरी शुरू की. वह 1983 में केरल हाईकोर्ट की जज बन गईं. इस दौरान उन्होंने दंगा और हत्या समेत कई सत्र और दीवानी मुकदमों की सुनवाई की. वह 6 अक्टूबर 1986 को केरल हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त हो गईं. इसके छह महीने के भीतर वह सुप्रीम कोर्ट की जज नियुक्त होने वाली पहली महिला बन गईं. एक साक्षात्‍कार में उन्‍होंने कहा था कि ‘मैंने दरवाजा खोल दिया है.’ उन्होंने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों की राह खुल गई है. उन्होंने न्यायपालिका और खासकर उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर चिंता जताई थी.

ज्‍यूडिशरी में महिला आरक्षण की थीं पक्षधर

फातिमा बीवी उच्‍च न्‍यायपालिका में महिलाओं के लिए आरक्षण की पक्षधर थीं. उनका मानना था कि आरक्षण मिलने पर ज्‍यादा से ज्‍यादा महिलाएं उच्‍च न्‍यायपालिका का हिस्‍सा बनेंगी. उन्‍होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए कई सक्षम महिलाएं मौजूद हैं. ऐसी सक्षम महिलाएं हैं, जिनकी नियुक्ति पर विचार हो सकता है. फातिमा बीवी 1992 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो गईं. इसके बाद उन्‍होंने 1993 में राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य और केरल पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के तौर पर काम किया.

राजीव गांधी के हत्‍यारों की दया याचिका की खारिज

वह 25 जनवरी 1997 को तमिलनाडु की राज्यपाल नियुक्त की गईं. उन्‍होंने राज्यपाल के तौर पर राजीव गांधी हत्याकांड में चार दोषियों की दया याचिका को खारिज कर दिया था. वहीं, 2001 में उन्होंने अन्‍नाद्रमुक महासचिव जयललिता को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया था. उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी. दरअसल, तब जयललिता को भ्रष्‍टाचार के मामले में दोषी पाए जाने पर चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था.

कई अवार्ड्स की सम्‍मानित हुई थीं फातिमा बीवी

हालांकि, बाद में फातिमा बीवी ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जजों से बातचीत करने के बाद ये फैसला लिया था. मामला तूल पकड़ा तो फातिमा बीवी ने इस्तीफा दे दिया. फातिमा बीवी को 1990 में डी लिट और महिला शिरोमणि पुरस्कार मिला था. उन्हें भारत ज्योति पुरस्कार और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था. अब उन्‍हें पद्म भूषण पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया जा रहा है.

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