ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को नवग्रहों का राजा कहा गया है. सूर्य हर महीने राशि परिवर्तन करते हैं. इस वजह से हर महीने एक सूर्य संक्रांति होती है. लेकिन, एक साल में पड़ने वाली सूर्य की 12 संक्रांति में से मकर संक्रांति का ही विशेष महत्व बताया गया है.
ग्रहों के राजा सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं. संक्रांति का अर्थ सूर्य के राशि बदलने से है. मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने, गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से 100 गुना पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान सूर्य की काले तिल और गुड़ का भोग लगाकर पूजन किया जाता है.
मकर संक्रांति पर पितामह ने त्यागे थे प्राण
मकर संक्रांति के महत्व को लेकर पंडित बालशुक आशीर्वाद महाराज बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपने पंच भौतिक शरीर का त्याग करने के लिए चुना था. उनको इच्छा मृत्यु का वरदान था और सूर्य के उत्तरायण होने पर ही उन्होंने देह का त्याग किया. मकर संक्रांति पर ही सूर्य उत्तरायण होते हैं और इस समय में मृत्यु पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
महाराजा सगर के पुत्रों को भी मिला मोक्ष!
मान्यता यह भी है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी ने महाराज सगर के 60000 पुत्रों का उद्धार किया था. ऐसा माना जाता है कि महाराजा सगर के 60 हजार पुत्र गंगाजी द्वारा मोक्ष को प्राप्त हुए और भगवान के धाम को चले गए. इसलिए माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं.