राम सूरत वर्मा को 2019 में अपनी जमीन बेचने के खुद के फैसले पर अब पछतावा हो रहा है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 155 किमी (96 मील) दूर अयोध्या जिले के तकपुरा गांव के किसान राम ने चार साल पहले एक स्थानीय प्रॉपर्टी डीलर को अपनी जमीन का 1.55 एकड़ (0.6 हेक्टेयर) हिस्सा बेच दिया था, जिसके एवज में उन्हें 2.50 करोड़ रुपए मिले थे. 65 वर्षीय व्यक्ति का मानना है कि अगर उन्होंने अपने फैसले में देरी की होती तो उन्हें कम से कम 10 गुना राशि मिल सकती थी.
राम सूरत वर्मा अल जज़ीरा को बताया, “यहां जमीन सोने से भी महंगी है, 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाए जाने के बाद से कीमतें बढ़ गई हैं. मैंने फैसले से पहले अपनी जमीन बेचने की गलती की. अगर मैंने जमीन के सौदे में देरी की होती, तो मुझे उस समय जो कीमत मिली थी, उससे कहीं बेहतर कीमत मिल सकती थी.”
वर्मा, जिनकी ज़मीन मंदिर से 7 किमी (4.3 मील) दूर है, ने अभी तक अपनी शेष 4.65 एकड़ (1.88 हेक्टेयर) ज़मीन बेचने का फैसला नहीं किया है. उन्होंने कहा, “प्रॉपर्टी ब्रोकर और ग्राहक हर दिन मेरे घर के बाहर कतार में खड़े रहते हैं और मुझे जमीन के लिए आकर्षक दाम की पेशकश करते हैं, लेकिन मैं दोबारा वही गलती नहीं दोहराऊंगा. सौदा करने में और देरी करने से मुझे निश्चित रूप से अधिक कीमत मिलेगी.”
अपनी जमीन बेचने पर ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति अपनाने वाले वर्मा अकेले नहीं हैं. अयोध्या जिले और उसके पड़ोसी क्षेत्रों में कई हजार किसान और भूमिधारक ऐसा ही कर रहे हैं, वे अपनी जमीन के लिए तेजी से कीमतों की उम्मीद कर रहे हैं, जिसकी मुख्य रूप से वहां वाणिज्यिक संपत्तियों के निर्माण के लिए भारी मांग है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बदल गई तकदीर
रियल एस्टेट में उछाल तब शुरू हुआ जब शीर्ष अदालत ने 9 नवंबर, 2019 को अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर) विवादित स्थल पर हिंदू भगवान राम के मंदिर के निर्माण के पक्ष में फैसला सुनाया. अदालत ने मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या के पास अलग से 5 एकड़ (2 हेक्टेयर) जमीन भी आवंटित की.
22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा
इस फैसले ने उस राजनीतिक और धार्मिक आंदोलन में नया रंग भर दिया, जो दशकों से उस स्थान पर मंदिर बनाने के लिए अभियान चला रहे थे, जिसे कई हिंदू राम का जन्मस्थान मानते हैं. लेकिन इसने उद्यमियों के लिए व्यापार के नए रास्ते भी खोल दिए, जिन्होंने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंदिर के उद्घाटन के बाद लाखों पर्यटकों के आने की उम्मीद में अयोध्या में निवेश के अवसरों का भरपूर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
लगातार बज रहे प्रॉपर्टी डीलर के फोन
अयोध्या में प्रॉपर्टी डीलर का काम करने वाले 33 वर्षीय विनय कुमार वर्मा ने अल जजीरा को बताया कि पिछले छह महीने से उनका फोन बजना बंद नहीं हुआ है, लोग होटल बनाने के लिए जमीन की उपलब्धता के बारे में पूछताछ कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “पहले, मुझे हर महीने व्यावसायिक इस्तेमाल के मद्देनजर जमीन मांगने के लिए एक से दो कॉल आती थीं, लेकिन अब मुझे इसके लिए प्रतिदिन आठ से नौ कॉल आ रही हैं.”
जमीन की कीमतों में उछाल
उनमें से कुछ कॉल अन्य राज्यों के लोगों से हैं जो पवित्र शहर में आने वाले तीर्थयात्रियों की भारी आमद को भुनाने के लिए होटल और गेस्ट हाउस बनाने में रुचि रखते हैं, जिससे यहां जमीन की कीमतों में भारी उछाल देखने को मिली है. साल 2019 में यहां प्रति एकड़ जमीन की 1.6 करोड़ रुपए थी, जो अब अब लगभग 6.4 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है. वर्मा ने कहा, “और फिर भी, लोग होटल और गेस्ट हाउस जैसी व्यावसायिक संपत्तियों में निवेश के बाद भारी रिटर्न की उम्मीद में अधिक भुगतान करने को तैयार हैं. यहां की ज़मीन राज्य की राजधानी लखनऊ की तुलना में चार से पांच गुना अधिक महंगी है.”
होटल के कमरों की मांग में इजाफा
22 जनवरी को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से पहले के दिनों में आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की ओर से होटल के कमरों की मांग में गजब का इजाफा देखा गया है – जो कि अयोध्या में और अधिक होटल बनाने की इच्छुक रियल एस्टेट फर्मों के व्यावसायिक तर्क को बल देता है. अधिकांश होटल बुक हो चुके हैं और मंदिर के उद्घाटन के बाद उपलब्ध होने पर भी कमरों की दरें बढ़ा दी गई हैं.