सोशल मीडिया पर बनाएं महज 30 मिनट की दूरी, 7 दिनों के अंदर दिखेगा चमत्कारिक फर्क

वर्तमान दुनिया कंप्यूटर क्रांति से आगे निकलते हुए डिजिटल और वर्चुअल युग में प्रवेश कर चुका है. इस डिजिटाइज दुनिया में सोशल मीडिया अधिकांश लोगों के जीवन का आंतरिक हिस्सा है. फेसबुक, ट्विटर के बाद अब अधिकांश लोग अपना ज्यादातर समय रील देखने में बिताते हैं. इस बावस्ता से मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है, इसे लेकर बहुत सारे अध्ययन हो रहे हैं. कुछ स्टडी में कहा जा रहा है कि इससे मूड बूस्ट होता लेकिन अधिकांश स्टडी इस बात की तस्दीक में है कि सोशल मीडिया पर बिताया गया समय रूह को नकारात्मकता से भर देता है. अब एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सोशल मीडिया के समय में आधे घंटे की कटौती करने से एंग्जाइटी और डिप्रेशन के लक्षण भी कम हो सकते हैं.

यूजर के मेंटल हेल्थ पर किया गया विश्लेषण

जर्मनी की रूहर यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर जूलिया ब्रेलोवस्किया ने अपनी टीम के साथ इस विषय पर स्टडी की है. इस रिसर्च में सोशल मीडिया के इस्तेमाल और उससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और वेल बीइंग पर पड़ताल की गई है. अध्ययन में विभिन्न सेक्टर में काम करने वाले 166 लोगों को शामिल किया गया. ये लोग एक दिन में कम से कम 35 मिनट तक सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने काम के अलावा करते थे. इन लोगों को दो समूहों में बांट दिया गया. पहले समूह को उसी तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने की छूट दे दी गई जैसा वे पहले करते थे जबकि दूसरे समूह को अपने कुल के सोशल मीडिया पर बिताए गए समय में से सिर्फ आधे घंटा कम करने को कहा गया. ऐसा करीब एक सप्ताह तक करने के लिए कहा गया. इसके बाद इन लोगों से कुछ सवाल किए गए. इनमें वर्कलोड, नौकरी में संतुष्टि, कमिटमेंट, मेंटल हेल्थ, स्ट्रेस लेवल और उनके व्यवहार से संबंधित सवाल किए गए.

यह बात रिजल्ट में आई सामने

सिर्फ एक सप्ताह के बाद लोगों में कई स्तरों पर बदलाव देखे गए. अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ एक सप्ताह तक आधे घंटे के सोशल मीडिया के इस्तेमाल को सीमित करने से जबर्दस्त सकारात्मक प्रभाव देखा गया. इससे नौकरी में संतुष्टि मिली और मानसिक स्वास्थ्य पहले से बहुत अधिक बेहतर हो गया. रिसर्च टीम की प्रमुख जूलिया ब्रेलोवसकेया ने बताया कि जिन लोगों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल आधा घंटा कम कर लिया उन्होंने दफ्तर में काम का बोझ कम महसूस किया और पहले से बेहतर प्रतिबद्ध भी हो गए. इन सबके अलावा इन लोगों को खुद के अलग हो जाने की भावना (fear of missing out) भी कम हो गई. इससे पहले ये लोग एंग्जाइटी बहुत महसूस करते थे. इनमें डिप्रेशन का लक्षण भी कम हो गया.

जूलिया ब्रेलोवस्किया ने बताया कि जब हम कोई काम करते हैं तो उस काम के अलावा अन्य काम दिमाग को भटकाता है. हमारा दिमाग इन चीजों को एक साथडील करने की क्षमता नहीं रखता. इसके साथ ही सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल भय और शंका की भावना बढ़ाती है. यही कारण है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम करने से मुख्य काम में दक्षता बढ़ जाती है.

By kavita garg

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