मुस्लिम पक्ष ने मांगा बाबरी मस्जिद का मलबा, तो हिंदू पक्ष ने कही बड़ी बात !

अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. श्रीराम जन्मभूमि (Shri Ram Ranmabhoomi) का विवाद सालों चला. हिंदू और मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर अपना-अपना दावा जताते रहे और सुप्रीम कोर्ट तक गए. आखिरकार साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष के हक में फैसला दिया और मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ. अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) वहीं बन रहा है जहां कभी विवादित बाबरी मस्जिद (Babari Masjid) हुआ करती थी, जिसे साल 1992 में ढहा दिया गया था.

6 दिसंबर 1992 को क्या हुआ था?

6 दिसंबर 1992 की सुबह विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और संघ के तमाम नेता और हजारों कार सेवक विवादित ढांचे के आसपास इकट्ठा होने लगे. 10 बजते-बजते सैकड़ों की तादाद में कार सेवक विवादित ढांचे की इर्द-गिर्द लगी कंटीली तार को हटाते हुए अंदर घुस गए. कुछ कार सेवक गुंबद के ऊपर चढ़ने लगे. करीब 11.30 बजे विवादित ढांचे का पहला गुंबद ढहा दिया गया. दोपहर 1 बजे तक तीनों गुंबद गिरा दिये गए.

हालांकि विश्व हिंदू परिषद ने पहले घोषणा की थी कि 6 दिसंबर को सिर्फ प्रतीकात्मक तौर पर कारसेवा होगी और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को भी ऐसा ही आश्वासन दिया था. यहां तक कि कल्याण सिंह सरकार ने कार सेवा से पहले सुप्रीम कोर्ट में बाकायदा हलफनामा देकर कहा था कि विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं होने देंगे.

बाबरी के मलबे पर मुस्लिमों का पक्ष

6 दिसंबर 1992 को जब विवादित बाबरी मस्जिद ढहाई गई तो वहां सिर्फ मलबा बचा रह गया. हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से भारी पैमाने पर यूपी पुलिस से लेकर पैरामिलिट्री के जवान तैनात कर दिये गए. विवाद जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो मुस्लिम पक्ष बार-बार कहता रहा कि बाबरी के मलबे पर उनका अधिकार है. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक रहे जफरयाब जिलानी जैसे कई मुस्लिम नेता बार-बार कहते रहे कि हिंदू पक्ष उन्हें मलबा लेने से रोक नहीं सकता.

SC ने खारिज कर दी थी मांग

साल 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया तो ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि वह बाबरी के मलबे के लिए अदालत जाएंगे. कमेटी के मुताबिक उन्होंने रिव्यू पिटीशन के दौरान भी बाबरी के मलबे की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने उनकी अर्जी खारिज कर दी थी.

तब जिलानी ने कहा था, ”शरियत के मुताबिक किसी मस्जिद के मलबे का किसी और निर्माण में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया. बाबरी मस्जिद के ढहाए गए गुंबद, पिलर और दूसरे मलबे को मुस्लिम पक्ष को सौंप दिया जाना चाहिए था..”

चिट्ठी लिखकर की थी मलबा लौटाने की मांग

साल 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद कमेटी ने हिंदू पक्ष को एक पत्र लिखा और सद्भावना के नाते मस्जिद का मलबा और अवशेष लौटाने की मांग की. चिट्ठी सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट के. परासरण के नाम लिखी गई थी, जिन्होंने उच्चतम न्यायालय में हिंदू पक्ष की तरफ से पैरवी की थी. अब वह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य भी हैं.

इस चिट्ठी में लिखा था:

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराने के बाद उसका जो मलबा है, वह जल्द वहां से हटा दिया जाएगा, क्योंकि वहां मंदिर बनेगा. मुसलमानों को डर है कि मस्जिद का अवशेष, उसके पत्थर, पिलर जैसी चीजें कूड़े में फेंक दी जाएंगी. हिंदू पक्ष के लिए ये चीजें किसी काम नहीं हों, लेकिन मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं और इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होंगी. ऐसे में मुस्लिम समुदाय की अपील है कि मलबा हमें सौंप दिया जाए

बाबरी के मलबे का हुआ क्या?

तो आखिर विवादित बाबरी मस्जिद के मलबे का हुआ क्या? इस बारे में जब श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय से पूछा गया तो वह कहते हैं- कौन जाने 28 साल बाद क्या हुआ… किसको पता! द क्विंट को दिए एक इंटरव्यू में मुस्लिम पक्ष द्वारा मलबा मांगने की बात पर चंपत राय (Champat Rai) कहते हैं, ”लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात और मांग रखने का अधिकार है. जब तक मामला कोर्ट में था, तब तक हमारा इस पर ध्यान था. अब हमारे लिए यह विषय समाप्त हो गया है और हम आगे बढ़ रहे हैं

कारसेवक प्रसाद के रूप में ले गए मलबा

इसी इंटरव्यू में विश्व हिंदू परिषद द्वारा बनाए गए राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य महंत कमलनयन दास कहते हैं कि ‘1992 में राम भक्तों ने जब विवादित ढांचा गिराया तो जो कुछ भी बचा था, उसे राम जन्मभूमि के प्रसाद के रूप में अपने साथ रख लिया. कुछ छोड़ नहीं वहां. महंत कमलनयन दास से जब पूछा गया कि आखिर कौन राम भक्त मलबा ले गए? तो कहते हैं कि राम के भक्त देश भर में हैं. कौन मलबा ले गया, कहां लेकर गया, इसका क्या पता…’

VHP ने क्या बताया था?

विश्व हिंदू परिषद के नेता सुरेंद्र जैन कहते हैं कि अब बाबरी मस्जिद के मलबे का जिक्र करने का कोई मतलब नहीं है. वैसे भी यह कभी मस्जिद थी ही नहीं. ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद कमेटी की तरफ से हमें चिट्ठी लिखी गई थी, लेकिन उन्होंने कभी गंभीरता ही नहीं दिखाई, क्योंकि उन्हें पता था कि इस मामले में कोई दम नहीं है.

By kavita garg

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