टाइम कैप्सूल क्या है ? राम मंदिर के गर्भगृह में 200 फीट गहराई में रखा जाएगा विनाश' के बाद भी देगा अयोध्या की जानकारी

अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होनी है. नागर शैली में बने भव्य मंदिर में रामलला विराजेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान के तौर पर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होंगे. अयोध्या के नए राम मंदिर की तमाम बातें अनोखी हैं. इस मंदिर में 2000 फीट नीचे खास टाइम कैप्सूल भी दबाया जाएगा. जिसमें राम मंदिर के इतिहास, राम जन्मभूमि से जुड़ी तमाम जानकारियां होंगी.

moneycontrol.com की एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्यों ने बताया कि मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल इसलिए रखा जाएगा ताकि भविष्य में किसी भी विवाद से बचा जा सके. कभी राम मंदिर या अयोध्या के इतिहास से जुड़ी कोई जानकारी हासिल करनी हो तो इस कैप्सूल में रखे दस्तावेजों से हासिल किया जा सकता है.

क्या होता है टाइम कैप्सूल?

टाइम कैप्सूल किसी भी आकर या शेप का मेटल का कंटनर होता है. यह एल्युमिनियम, स्टेनलेस स्टील अथवा तांबे जैसी धातु का बनता है. चूंकि एल्युमिनियम या स्टेनलेस स्टील में जंग लगने की आशंका होती है इसलिये ज्यादातर कैप्सूल तांबे के होते हैं. टाइम कैप्सूल के अंदर जिन दस्तावेजों को रखते हैं, वह खास एसिड में डूबे होते हैं ताकि हजारों साल बाद वो सड़े-गले नहीं.

क्यों रखते हैं टाइम कैप्सूल?

टाइम कैप्सूल किसी खास जगह, वस्तु अथवा काल खंड की जानकारी देने के लिए रखा जाता है. कैप्सूल में उस जगह अथवा वस्तु से जुड़े तमाम दस्तावेज, कलाकृतियां और सूचनाओं को रखकर मिट्टी के अंदर दबा दिया जाता है. भविष्य में इस कैप्सूल के जरिए संबंधित वस्तु अथवा जगह के बारे में पूरी जानकारी हासिल की जा सकती है.

कितने वक्त के लिए, कहां दबाया जाता है?

अमूमन टाइम कैप्सूल किसी इमारत की नींव में ही रखे जाते हैं. टाइम कैप्सूल दो तरीके से रखा जाता है. एक अनिश्चितकाल के लिए और दूसरा निश्चित समय के लिए. उदाहरण के तौर पर जॉर्जिया में एक टाइम कैप्सूल साल 1940 में दबाया गया था और तय किया गया था कि अगर मानव सभ्यता रही तो इसे साल 8113 में निकाल लिया जाएगा. इसी तरह लेखिका मार्ग्रेट एटवुड (Margaret Atwood) के कई अप्रकाशित उपन्यास टाइम कैप्सूल में दफन हैं, जिन्हें साल 2114 में निकालकर प्रकाशित किया जाना है.

राम मंदिर के टाइम कैप्सूल में क्या है?

अब राम मंदिर (Ram Mandir) के नीचे रखे जा रहे टाइम कैप्सूल की बात करें तो इस कैप्सूल में अयोध्या, श्रीराम जन्मभूमि, भगवान राम और उनके जन्म स्थान के बारे में संस्कृत में पूरा विवरण और दस्तावेज हैं. ट्रस्ट के मुताबिक संस्कृत ऐसी भाषा है जिसमें कम शब्दों में लंबे वाक्य लिखे जा सकते हैं. इसलिये यह भाषा चुनी गई. राम मंदिर के नीचे रखा जा रहा टाइम कैप्सूल तांबे का है. ट्रस्ट के मुताबिक अगर धरती पर कोई विनाश आ गया या सैकड़ों साल बाद भी इस कैप्सूल के जरिये अयोध्या और राम मंदिर की जानकारी हासिल की जा सकेगी.

भारत में और कहां-कहां हैं टाइम कैप्सूल?

भारत के तमाम महत्वपूर्ण जगहों पर टाइम कैप्सूल रखे गए हैं. सबसे चर्चित मामला लाल किले का है. साल 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लाल किले के अंदर एक टाइम कैप्सूल रखवाया था. हालांकि उसे कुछ वक्त बाद ही बाहर निकाल लिया गया था. इसके अलावा आईआईटी कानपुर, महात्मा मंदिर गांधीनगर और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी जालंधर जैसी जगहों पर भी इसी तरह के टाइम कैप्सूल रखे गए हैं.

लाल किले से किसने, क्यों निकाला टाइम कैप्सूल?

साल 1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने लाल किले के अंदर एक कैप्सूल रखने का निर्णय लिया. बेलनाकार आकार के मेटल के उस कैप्सूल में हाथ से लिखे रिकॉर्ड और कलाकृतियों थीं. लाल किले के अंदर जो टाइम कैप्सूल रखा गया था उसे 1000 साल बाद निकाला जाना था, लेकिन इंदिरा गांधी के कुर्सी से हटते ही जनता पार्टी की सरकार ने इसे निकलवा लिया था.

उस वक्त हीरेन मुखर्जी, ज्योतिर्मय बसु और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने जनता पार्टी के इस फैसले का विरोध किया था, लेकिन जनता पार्टी का तर्क था कि इंदिरा गांधी की सरकार ने उस कैप्सूल में सिर्फ गांधी परिवार की बड़ाई और उससे जुड़े दस्तावेज रखवाए थे. भारत के इतिहास संस्कृति से इसका कोई लेना देना नहीं था.

दुनिया में और कहां, क्यों है विवाद?

दुनिया के तमाम ऐतिहासिक स्थलों पर भी टाइम कैप्सूल पाया गया है. साल 2017 में स्पेन के बर्गोस में ईसा मसीह की मूर्ति के अंदर एक 400 साल पुराना टाइप कैप्सूल पाया गया था, जिसमें साल 1777 की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जानकारियां थीं. यह अब तक का सबसे पुराना कैप्सूल था.

टाइम कैप्सूल पर विवाद भी है. विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार कैप्सूल में गैर-जरूरी जानकारियां भी रख दी जाती हैं. खास व्यक्ति या वस्तु का महिमामंडन होता है. पुरातत्वविदों को इससे कोई जानकारी हासिल नहीं होती है.

By kavita garg

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