भारत सरकार ने 75वें गणतंत्र दिवस से पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की है. भारत सरकार ने 5 पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 110 पद्म श्री सम्मान की घोषणा की है. जिन पांच लोगों को पद्म विभूषण दिया गया है, उनमें से एक नाम बिहार के दिवंगत डॉ. बिंदेश्वर पाठक का भी है, जो मूलतः बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले थे. बिंदेश्वर पाठक को सुलभ शौचालय की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है. इन्होंने अपना पूरा जीवन उन लोगों की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया जिन्हें इस समाज में कभी अछूत समझा जाता था. उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था की स्थापना की और इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इनके प्रयास के कारण सुलभ शौचालय की कल्पना को साकार किया गया. इन्हें भारत का टॉयलेट मैन भी कहा जाता है.
हाथों से मैला ढोने की परंपरा को मिटाने की खाई थी कसम
बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. जिस वक्त बिंदेश्वर पाठक का जन्म हुआ था उस वक्त समाज में छुआछूत की परंपरा थी और हाथों से मैला ढोने की परंपरा थी. एक खास समाज के द्वारा यह काम किया जाता था और उस समाज को लोग नीच दृष्टिकोण से देखते थे. इसी समाज की हालत देखकर बिदेश्वरी पाठक ने यह संकल्प लिया कि वो इस परिपाटी को समाप्त करेंगे और फिर इसके पीछे काम करने के लिए जुट गए. इस काम में उन्हें काफी मुश्किलें आई लेकिन उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
बचपन में मेहतर को छूने पर दादी से पड़ी थी डांट
बिंदेश्वरी पाठक को मेहतर समाज के लिए काम करने का विचार उस समय आया जब वह महज छह साल के थे. अपने कई इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब वह मात्र छह साल के थे तब उन्होंने एक महिला मेहतर को छू दिया था, तब उनकी दादी ने उन्हें दंडित किया था. इतना ही नहीं जिस घर में उनका जन्म हुआ था उस घर में उस दौरान शौचालय नहीं था और घर की महिलाओं को बाहर जाना पड़ता था. इन सब बातों से बिंदेश्वर पाठक बड़े प्रभावित हुए थे और उन्होंने निश्चय किया था कि वह स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ अलग करेंगे. हालांकि उनके जीवन की दो बड़ी घटनाओं ने उनपर काफी प्रभाव डाला था.
पहली घटना में एक मल साफ करने वाले लड़के को पर एक सांड ने हमला किया था, लेकिन छुआछूत के कारण कोई उसे बचाने नहीं गया और उसकी मौत हो गई थी. जबकि दूसरी घटना में एक नई नवेली दुल्हन को जब उसकी सास ने मल साफ करने के लिए जाने को कहा तो वह रोने लगी. इन दोनों घटनाओं से उन्होंने इस समाज के लिए काम करने का संकल्प लिया था.
बेचने पड़े थे पत्नी के गहने, नाराज रहते थे ससुर
बिंदेश्वर पाठक ने अपने इस अभियान की शुरुआत चंदे से की थी. उन्होंने 9 लोगों से 75 रुपए चंदा लेकर अपने अभियान को शुरू किया. उनके इस सफर में काफी मुश्किलें आई. पत्नी के गहने बेचने पड़े थे, प्लेटफार्म पर सोना पड़ता था लेकिन अपने धुन में पक्के डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने हार नहीं मानी.
इनके इस जिद के कारण इनके ससुर इनके नाराज रहते थे और उन्होंने इनका मुंह नहीं देखने तक की कसम खा ली थी. लेकिन बाद में इन्होंने स्वच्छ भारत अभियान में अहम योगदान दिया और 15 अगस्त 2023 को इनका अस्सी वर्ष की आयु में निधन हो गया.