उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) ने यूपीपीएससी पीसीएस परीक्षा का रिजल्ट जारी किया है. इसी भर्ती परीक्षा के जरिए डीएसपी और डिप्टी कलेक्टर बनते हैं. अन्य राज्यों में भी राज्य लोक सेवा आयोग के जरिए ही इन पदों के लिए चयन होता है. इन पदों पर नौकरी पाने का सपना हर किसी के दिलों में होता है. अगर आप भी इन पदों पर नौकरी पाने की ख्वाहिश रखते हैं, तो आपको पुलिस उपाधीक्षक (DSP) और डिप्टी कलेक्टर के पॉवर, उसके अधिकारों और दोनों के बीच होने वाले अंतरों के बारे में भी जानना चाहिए.
पुलिस उपाधीक्षक
पुलिस उपाधीक्षक यानी DSP एक पुलिस ऑफिसर होता है, जो एक विशिष्ट क्षेत्र में लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. उनके पास अपने अधिकार क्षेत्र में लॉ एनफोर्समेंट एक्टिविटी को कंट्रोल और प्रबंधित करने का अधिकार होता है. डीएसपी अपराध की रोकथाम, जांच और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनके पास व्यक्तियों को गिरफ्तार करने, जांच करने और पब्लिक सेफ्टी और सिक्योरिटी से संबंधित कानूनों को लागू करने का पॉवर होता है.
डिप्टी कलेक्टर
डिप्टी कलेक्टर एक प्रशासनिक अधिकारी होता है. वह विकासात्मक कार्यों और प्रशासनिक कार्यों के लिए एक निर्दिष्ट क्षेत्र के मैनेजमेंट में जिला कलेक्टर की सहायता करता है. वे राजस्व प्रशासन, भूमि रिकॉर्ड और अन्य संबंधित मामलों के लिए जिम्मेदार होते हैं. डिप्टी कलेक्टरों को राजस्व अदालतों का संचालन करने, विभिन्न बकाया और करों को इकट्ठा करने और राहत और पुनर्वास कार्य करने का अधिकार होता है. उनके पास विभिन्न वैधानिक सर्टिफिकेट जैसे राष्ट्रीयता, निवास, विवाह और बहुत कुछ जारी करने का भी पॉवर होता है.
DSP और डिप्टी कलेक्टर में अंतर
डीएसपी मुख्य रूप से लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि डिप्टी कलेक्टर राजस्व प्रशासन और विकासात्मक एक्टिविटीज में शामिल होता है. अधिकार के संदर्भ में बात करें, तो डीएसपी के पास कानून लागू करने और गिरफ्तारियां करने पॉवर है. वहीं डिप्टी कलेक्टरों के पास राजस्व अदालतों का संचालन करने और वैधानिक सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार होता है.
दोनों पद अपने-अपने क्षेत्र में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां रखते हैं, लेकिन उनके काम की प्रकृति और उनके अधिकार का दायरा अलग-अलग हो सकता है.
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