यूं तो पूरे देश में हिंदू कानूनी तौर पर केवल एक शादी कर सकते हैं. पहली पत्नी के रहते हुए उनकी दूसरी शादी अवैध मानी जाती है. हालांकि एक राज्य ऐसा भी है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है, वहां बाकी धर्मों को तो नहीं लेकिन वहां के हिंदुओं को शर्तों के साथ कई शादियों की आजादी है.
ये राज्य गोवा है. गोवा में जब पुर्तगाली शासन था, तब वहां पुर्तगाली सिविल कोड लागू किया गया. ये 1867 की बात है. तब तक भारत में ब्रिटिश राज में भी सिविल कोड नहीं बनाया गया था. लेकिन पुर्तगाल सरकार ने ऐसा कर दिया. जब पुर्तगाल सरकार ने गोवा उपनिवेश के लिए ये कानून बनाया तब गोवा में दो धर्म के लोग ही बहुलता में थे- ईसाई और हिंदू.
गोवा में हिंदुओं की शादियों का रिवाज
तब वहां के हिंदुओं में कई शादियों का रिवाज था और भारत में हिंदू और मुसलमान कई शादी कर सकते थे. लेकिन गोवा में जब समान नागरिक संहिता कानून बना तो इसने हर किसी के लिए एक ही शादी का प्रावधान किया.
प्रावधान ये था कि पहली पत्नी के रहते कोई भी व्यक्ति दूसरा विवाह नहीं कर सकता लेकिन ये कानून कुछ शर्तों के साथ केवल वहां पैदा हुए हिंदुओं को एक पत्नी के रहते दूसरे विवाह की इजाजत देता था. ये कानून अब भी उसी तरह लागू है.
जब गोवा आजाद हुआ तब क्या हुआ
जब गोवा आजाद हुआ तो नए राज्य में उसी सिविल कोड को अपना लिया गया तो पुर्तगालियों के शासन के तहत 93 सालों से वहां चल रहा था. ये हिंदुओं को कुछ स्थितियों में बहुविवाह की अनुमति देता है. इसके अनुसार
– 25 साल की उम्र तक अगर पत्नी से कोई संतान नहीं हो तो पति दूसरी शादी कर सकता है.
– 30 साल की उम्र तक अगर पत्नी पुत्र को जन्म नहीं दे पाती तो भी पति दूसरी शादी कर सकता है.
क्या स्थिति थी प्राचीन भारत में
वैसे अगर बहुविवाह की बात करें तो ब्रितानी राज में ही नहीं बल्कि प्राचीन भारत में एक पुरुष की कई शादियां बहुत सामान्य बात थी. राजा और बडे़ अफसर ऐसा खूब करते थे. इसे लेकर कोई प्रतिबंध नहीं था. कई राजाओं के यहां रानियों की फौज होती थी. जिस समय अंग्रेज भारत में शासन कर रहे थे, तब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह के बारे में कहा जाता था कि उनके रनिवास में 80 से ज्यादा रानियां थीं. जिसमें कुछ को मुख्य रानियों का दर्जा हासिल था.
हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाता है. इस अधिनियम के मुताबिक, बहुविवाह से होने वाली शादी कानूनी तौर पर वैध नहीं है. कानून का पालन नहीं करने वाले किसी भी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत दंडित किया जाएगा.
1955 के हिंदू विवाह अधिनियम ने सभी हिंदू समुदायों के लिए बहुविवाह को कानूनी रूप से समाप्त कर दिया. इसके बाद, हिंदू धर्म में दूसरी शादी पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दी गई.
ब्रिटिश राज में सिविल कोड
बाद में 1935 में जब ब्रिटिश राज में नागरिक सिविल कोड कानून लाया गया तब हिंदुओं और मुसलमानों को उनके व्यक्तिगत कानूनों के चलते एक शादी के दायरे से अलग रखा गया.
मिजोरम में एक जनजाति अब भी करती है बहुविवाह
वैसे मिजोरम में जरूर एक ऐसी जनजाति है, जिसे लांपा कोहरान थार या चाना कहा जाता है, जिसमें एक पुरुष कई बीवियां रख सकता है. ये जनजाति ईसाई धर्म मानती है.
मिजोरम में एक खास चाना जनजाति के पुरुषों को कई शादियों की इजाजत है. ये जियोना चाना हैं, जिनकी पिछले साल मृत्यु हो गई. आधिकारिक तौर पर उनका परिवार 38 बीवियों और 89 बच्चों का था. इसके अलावा 30 से ज्यादा नाती-पोते थे.
वहां ये रिवाज अब भी चल रहा है. इसी समुदाय से ताल्लुक रखने जिओना चाना के 38 बीवियां और 89 बच्चे थे. जियोना का 2021 में निधन हो गया लेकिन उनके नाम दुनिया के सबसे बड़े परिवार का रिकॉर्ड दर्ज था. कानून इस जनजाति की बहुविवाह परंपरा में दखल नहीं देता.
बांग्लादेश में भी हिंदुओं को बहुविवाह की इजाजत
बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ और इसके बाद गणतांत्रिक राज्य बना. वहां के सिविल कोड में भी हिंदुओं को कई शादियों की इजाजत है.